Sonbhadra News मध्य प्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़ और बिहार जैसे राज्यों को जोड़ने वाले वाराणसी-शक्तिनगर मार्ग पर मारकुंडी घाटी में एक किनारे हजारों लोगों की भीड़ हर साल लगती है। यह भीड़ कवत खाने नहीं बल्कि हर साल दीपावली के दूसरे दिन मनाये जाने वाले गोवर्धन पूजा को मनाने के लिए जुटती है।
यहां भीड़ के बीच दर्जनों घड़े में रखा उबलता हुआ दूध, उससे नहाते पतिवाह बाबा आकर्षण का केंद्र रहते हैं। पतिवाह बावा साल भर तक के मौसम के मिजाज को भी यहीं से बता देते हैं। जिस स्थल यह आयोजन होता है वह काफी ऐतिहासिक है। हर कोई आयोजन स्थल के पास खड़े खंडित पत्थर के बारे में जानने की इच्छा रखता है। तो आइए बताते हैं क्या है इस पत्थर की कहानी। इस बार गोवर्धन पूजा 21 अक्टूबर को होगा।
मारकुंडी घाटी में स्थित यह वह पत्थर है, जिसे वीर लोरिक ने अपनी बलशाली भुजाओं से खंडित कया था। इस विशालकाय पत्थर को खंडित करके वीर लोरिक ने अटूट प्रेम का परिचय दिया था। इस अटूट प्रेम की निशानी के रूप में खड़ा यह खंडित पत्थर आज न सिर्फ प्रेम करना सिखा रहा है बल्कि अपनी संस्कृति और विरासत के प्रति जवाबदेह भी बना हुआ है। जानकार लोग बताते हैं कि जिस समय बलिया जिले के गौरा के रहने वाले वीर लोरिक ने करीब 200 किमी दूर सोनभद्र के अगोरी स्टेट की रहने वाली मंजरी को अपना प्रेम प्रस्ताव दिया, तो मंजरी कई रातों तक सो नहीं सकी थी।
मगर मंजरी को देखने के बाद वीर लोरिक ने सोच लिया था कि वो मंजरी के अलावा किसी से व्याह नहीं करेगा। उधर, मंजरी के ख्यालों में भी दिन रात केवल लोरिक का चेहरा और बलशाली भुजाएं थीं। इधर, मंजरी पर की अगोरी स्टेट के राजा मोलाभगत निगाह थी। राजा के बारे में कहा जाता है कि राजा काफी अत्याचारी था। जब मंजरी और लोरिक के प्यार के बारे में मंजरी के पिता मेहर को पता चला तो वो भयभीत हो गया। क्यूंकि मोलाभगत के कृत्यों से वह पूरी तरह से जानता था। ऐसे में मेहर ने लोरिक से तत्काल संपर्क किया और मंजरी से जिसका घर का नाम चंदा था तत्काल विवाह करने को कहा।
लड़ाई के बाद पहुंची थी बराव
Sonbhadra News : कहते हैं मां काली के भक्त लोरिक की शक्ति का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनकी तलवार करीब 85 मन की थी। युद्ध में वे अकेले हजारों के बराबर थे। लोरिक को पता था कि बिना मोलाभगत को हराये वह मंजरी को विदा नहीं करा पायेगा। युद्ध की तैयारी के साथ बलिया से बारात सोन नदी तट तक आ गई। राजा मोलाभगत भी तमाम उपाय किये कि बारात सोन नदी को न पार कर सके, किंतु बारात नदी पार कर अगोरी किले तक जा पहुंची। बारात के यहां तक पहुंचने के पहले भीषण युद्ध हुआ।