मध्य प्रदेश

Singrauli News-न बिजली-पानी और न चलने लायक सड़क, बैगा आदिवासी इलाके उतानी पाठ गांव की कहानी

21वीं सदी, आधुनिकता और जबरदस्त विकास के दावों के बीच मध्य प्रदेश में एक ऐसा भी गांव है जहां कुछ नहीं है. यहां पैर रखते ही या इसकी तस्वीरें देखते ही आपको लगने लगेगा कि ये क्या है? क्या ये वही भारत है, क्या ये वही मध्य प्रदेश है, जो विकास के नए-नए आयाम रोज हासिल कर रहा है. यहां रहने वाले लोग दशकों से बेकार और बर्बाद जीवन जीने को मजबर हैं.

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Singrauli News

मध्यप्रदेश का सिंगरौली जिला यूं तो पावर हब,कोयले की खान, व खनिज संपदाओं की बाहुल्यता के लिए जाना जाता है, यहाँ की बिजली देश विदेश को रोशन करती है, और यही वजह है कि इस उर्जाधानी शहर से प्रदेश सरकार को इंदौर के बाद दूसरे नंबर पर सबसे ज्यादा राजस्व मिलता है लेकिन विडम्बना देखिए उर्जाधानी सिंगरौली जिले के कई गाँव आज भी अंधेरे में है, आजादी के कई दशक गुजर जाने के बाद भी यहाँ के लोगों को बिजली नसीब नही हुई , पीबी लाइव न्यूज़ की टीम ने ऐसे ही एक गाँव उतानी पाठ में पहुँची , जहाँ गाँव मे पहुँचने के लिए सड़क भी नही है ,3 से 4 किलोमीटर दूर तक पैदल पगडंडियों रास्ते से होते हुए पीबी लाइव न्यूज़ टीम ने उस गाँव मे पहुँचकर वहाँ के रहने वाले बैगा आदिवासियों के लोगों का हाल जाना,

सड़क न पानी और न ही बिजली एक ओर भीषण गर्मी का प्रकोप दूसरी ओर इन समस्याओं की मार, जिला जिला मुख्यालय से करीब 90 किलोमीटर दूरी पर बसा उतानी पाठ गाँव मे रहने वाले बैगा आदिवासी टोले की यही कहानी है, इस गाँव मे करीब 400 बैगा आदिवासी रहते है, गाँव नादों ग्राम पंचायत के अंतर्गत आता है, लेकिन आज भी इस विकास की मुख्यधारा में आने के लिए जदोजहद कर रहा है .इस गाँव मे रहने वाले रहवासियों के सामने सबसे बड़ी समस्या पानी की है, अब गाँव गाँव का दुर्भाग्य कहें या फिर शासन प्रशासन की लापरवाही, लोगों को अपनी प्यास बुझाने के लिए 3 से 4 किलोमीटर का सफर तय करके नदी में पानी लाने के लिए जाना पड़ता है, यहाँ के लोग बूंद बूंद पानी के लिए तरस रहें है ,

आजादी के सात दशक बाद भी नहीं बदली गांव की सूरत

गाँव के सहदेव बैगा ने पीबी लाइव न्यूज़ को बताया कि गाँव से पानी लाने के लिए 3 से 4 किलोमीटर दूर नदी में जाते है ,जहाँ से पानी लाते है, गाँव मे न तो सड़क है न बिजली और न ही यहाँ पर किसी प्रकार की कोई व्यवस्था, जब कोई बीमार होता है तो खाट पर लेकर जाते है क्योंकि यहाँ कोई भी वाहन नही आ पाती है, सड़क भी नही है. बच्चों को पढ़ने के लिए एक प्राथमिक विद्यालय है लेकिन वह भी खंडहर में अब तब्दील हो चुकी है, मास्टर साहब भी यहाँ के बच्चों को पढ़ाने के लिए एक महीने में चार से पांच दिन ही आते है.

गाँव की बैगा परिवार की सीता कुमारी ने रात के अंधेरे में चूल्हे में खाना बना रही थी, पीबी लाइव न्यूज़ को सीता ने अपने दर्द बयां करते हुए बताया कि गाँव मे आज तक बिजली नसीब नही हुई अंधेरे में ही जिंदगी गुजर रही है, किसी भी सरकारी योजनाओं का लाभ नही मिला, उनकी बेटी भी टार्च के सहारे पढ़ाई करती है रात में

70 साल की सुकवरिया बैगा बताती है कि उन्हें सरकारी योजना का लाभ तो आज तक नही मिला,पानी की सबसे बड़ी समस्या है इस गाँव मे, बातों ही बातों में सुकवरिया अपनी दर्द बयां करते हुए भावुक हो गई .

यह कहानी सिर्फ सीता या सुकवरिया देवी तक ही सीमित नही है बल्कि करीब 400 बैगा आदिवासी समुदाय के उस गाँव की है जो आज भी विकास के मुख्य धारा में आने के लिए जद्दोजहद कर रहें है.

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विकास की किरण देखने के लिए तरस रहा है यह गाँव

इस गाँव के रहवासी अंधेरे में रहने और पगडंडियों के सहारे चलना ही अपनी नियति मान चुके है, वहीँ इस गाँव की नई पीढ़ी को दर्श प्रदेश की सरकारों से काफी उम्मीदें है,जिनका मानना है कि आने वाले समय हमारे भी घर बिजली से रोशन होंगे और हम पक्की सड़कों पर चल सकेंगे.

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