जब डिलीवरी ब्वाय बन जाए सीईओ सोचो जरा ऐसा हो तो क्या हो

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डिलीवरी: पड़ोसी ने हमसे कहा, निशानेबाज, दुनिया की रीत यही है कि समाज में बड़ों को इज्जत मिलती है और छोटों को जिल्लत झेलनी पड़ती है. हिंदी फिल्मों में रामू काका नामक नौकर से सभी लोग एक साथ अपना काम कराना चाहते हैं. जिसका काम जल्दी नहीं हुआ, वह उसे डांटने फटकारने लगता है.

हमने कहा, कभी-कभी किसी बड़ी कंपनी के बॉस को सनक सवार होती है कि अपने फील्ड में काम करनेवाले कर्मचारियों की हालत को प्रत्यक्ष जाकर देखें और मालूम करें कि वह कितनी चुनौतियों, कठिनाइयों और उपेक्षा से जूझते हैं. इसका प्रत्यक्ष अनुभव लेने के लिए वह वेश बदलकर बाहर निकल पड़ते हैं. झोमैटो के सीईओ दीपेंद्र गोयल अपनी कंपनी के गिग वर्कर्स या डिलीवरी ब्वॉय की दिक्कतों और वेदनाओं को समझने के लिए खुद ही डिलीवरी ब्वॉय की ड्रेस पहनकर बाइक पर फूड डिलीवर करने पहुंचे. उनके साथ उनकी पत्नी भी थीं.

जब वह खाद्य पदार्थ का पार्सल लेने गुरुग्राम के एम्बिएंस मॉल में पहुंचे तो गार्ड ने डिलीवरी ब्वाय समझकर उन्हें बाहर ही रोक दिया और दूसरे रास्ते से जाने को कहा. पूछने पर उन्हें बताया गया कि डिलीवरी ब्वाय को लिफ्ट इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं है इसलिए सीढ़ियां चढ़कर ऊपर जाओ. ऊपर पहुंचने पर वहां के गार्ड ने अंदर नहीं आने दिया और कहा कि अन्य डिलीवरी ब्वायज की तरह सीढियों पर बैठे रहो. यहीं थोड़ी देर में पार्सल मिल जाएगा. सीईओ होने पर भी गोयल ने अपनी पहचान नहीं बताई और धूल भरी सीढियों पर बैठे रहे. पार्सल मिलने पर टाइम के भीतर ग्राहक के पास पहुंचाने के लिए ले गए. इस तरह उन्होंने डिलीवरी ब्वाय बनने का अभिनय किया और उनकी दिक्कतों से रूबरू हुए. उन्हें समझ में आ गया कि डिलीवरी ब्वाय से कैसा भेदभाव किया जाता है.

हमने कहा, इसी तरह अरब देश का एक खलीफा हारूं- अल- रशीद रात में फकीर का भेष लेकर अपनी प्रजा का हालचाल देखने निकल पड़ता था. नागपुर में जब पुलिस कमिश्नरी शुरू हुई थी तो मुगवे नामक पुलिस कमिश्नर भी ऐसे ही रात में भेष बदलकर कानून व्यवस्था और काले धंधों का जायजा लेने निकल पड़ते थे. वह भी एक तरह का एडवेंचर है.

Credit by navbharat

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